चंद्रमा ललाट पर भूतों के नाते है फिर भी भूत का तक नहीं वह आज का यथार्थ है
वैराग्य का अर्थ है कण-कण से पर मारते हैं आंख मूंदे बैठे मोहन हैं हम सबके भोलेनाथ हैं
स्वार्थ से परे हैं जो पर मार्च से भरे हैं जो मेरे आराध्य के आराध्य है वह नाथों के नाथ है
वह जग के भोलेनाथ हैं युद्ध विकराल हो या शत्रु ही विशाल हो बाल उसका नाम आता हो
जिसकी रक्षा करते महाकाल हो मनमोहक चरित्र Shiva Swaroop Darshan Mahadev
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Shiva Swaroop Darshan Mahadev Poetry
वेशभूषा विचित्र है जिसका कोई धरा पर नहीं उसके महादेव मित्र हैं समय से पहले अस्तित्व में काल
से परे हैं वह निर्मल सी मुस्कान लिए चंद्रमा भाल करे हैं वह वैराग्य का जीवन कोई ना विकार है
त्रिशूल लिए हाथ में कंठ में तर्पण अलंकार है वैष्णव में श्रेष्ठ है संतों के संत हैं स्वरूप कैसे जाने
उनका जिनका आती है ना अदनान पर है हमें भी विद्या चाहिए क्योंकि शिव नीति भांग पी पिया तो है
ना हम भी था तुमने बीच की क्यों ना मांग की और भांग का संबंध किस Credit DeepanKur Bhardwaj Poetry
ने उल्लेख किया पुराणों में तो नहीं मिला तुम्हें किसने यह ज्ञान दिया अरे मुंह से परे है
जो उसे चिलम नहीं चाहिए महायोगी कहलाते शिव है जरा ज्ञान ले कर आइए एकमात्र
वो यथार्थ हैं उनका तीनों काल पूरा जग झूम उठता है मेरे भोले के डमरू की ताल पर
तो हमसे भी तो में है क्रोध में मौजूद रहे सबसे बड़े योद्धा हर जटा में वीरभद्र है प्रेम का बोध है
रावण का क्रोध है गधी जी का त्याग और दुर्गा का तार है साधना में लीन जब तक आतंक कैलाश है
आंख खुल गई जो तीसरी समझो वह चला भी नाचे है पक्षपात से परे कोई निंदनीय देवों के देव
फिर भी दातों में वंदनीय रहते श्मशान में बैठे हैं ध्यान में मृत्यु का तांडव भी है भोले की मुस्कान में
मन में अभिमान लेकर कैलाश कैसे जाओगे स्वार्थ नहीं त्यागो के सचिव को न पाओगे परमार तथा
भावनाओं करुणा से भर जाओगे आदि से अंत तक शिव को ही पाओगे प्रेम का जो रस होगा उस में
खो जाओगे शिव से ही तो निकले हो जाते शिव में ही कमाओगे जाकर शिव के हो जाओगे
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