शुरू हुआ सन 57 में आजादी का नया फ़साना था 1960 में जन्म लिया एक बालक ने जिसे
आगे चलकर शहीद-ए-आजम कहलाना था भगत सिंह का नाम उसका मुख सूरत से भी प्यारा था
तेज झलकता था मुख्य मंडल पर भारत मां का राज दुलारा था जब से बसंती चोला Shaheed-E-Aazam Bhagat Singh
उड़ा देश प्रेमी सहारा था अरे दिलो-दिमाग पर रहता सदा ही इंकलाब का नारा था
लहू उतरा था आंखों में और खूनका हर कतरा ही खोला था जब जलियांवाला बाग
में डायर ने फायर फायर बोला था खून से लथपथ माटी देख दिमाग भगत का घूमर था
और निर्दोषों के खून से सनी उस माटी को भगत सिंह ने चुना था
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Shaheed E-Aazam Bhagat Singh | A Tribute to Bhagat Singh |
12 साल के भगत सिंह की आंखे जलियांवाला बाग देख भराई थी आजादी ही दुल्हन है
मेरी कसम है उसने खाई थी बात पते की सबसे पहले भगत सिंह ने पहचानी थी
अरे वीरों ने हथियार गिराए तब शुरू हुई अंग्रेजों की मनमानी थी
अहिंसा के उस नारे पर काश बापू तुम शर्मिंदा होते हिंसा के बदले जो हिंसा होती तो लाला लाजपत
राय आज भी जिंदा होते मातृभूमि को सर्वत्र देकर अपनी ही धुन में बैठा था चाहता तो सिर झुका सकता था
पर सरफरोशी की तमन्ना वह दिल में लेकर बैठा था ब्रिटिश हुकूमत के आतंक से हुआ
हर देशवासी बेचारा था इसी बात पर चढ़कर सांडर्स को Shaheed-E-Aazam Bhagat Singh
कुत्ते की मौत मारा था जान हथेली पर लेकर आजादी का अफसाना गुनगुनाया था अदालत में
धमाका करके बहरी हुकूमत को इंकलाब सुनाया था असहनीय पीड़ा मिली कारागार में आजादी
का कारवां फिर भी रुका नहीं अंग्रेज कोड़े बरसा बरसा कर थक गए भारत मां का लाल फिर भी
झुका नहीं जेल में अधिकार ना मिलने पर क्रांति वहां भी जारी थी और भगत सिंह को जेल में लाकर
अंग्रेजों ने भूल कर दी भारी थी भूख हड़ताल की लहर उठी तो चढ़ा अंग्रेजों का पारा था
अरे लाहौर से दिल्ली तक फिर गूंजा इंकलाब का नारा था
भगत सिंह कविता
भूखे प्यासे सब सहते रहे और रंग दे बसंती चोला गाया था ना जाने रब ने कॉन सी मिट्टी से ऐसा
वीर सपूत बनाया था पानी के घड़े में दूध भरा जब भूख को ना तोड़ सके पर भूले थे वह ऐसा कोई
पहाड़ नहीं जो रुक दरिया का मोड़ तक एक गुलामी की टूटी बेड़ियां भारत में आई नई रवानी थी
और भगत सिंह ने नाम करीब आजादी के अपनी जवानी थी फांसी की सजा जब मिलीभगत
को इंसाफ उस दिन सोया था भारत का बच्चा-बच्चा उस दिन फूट फूट कर रोया था
जिसने बापू पर उंगली उठाई कि हमने भी उसकी निंदा है पर फांसी न रोकी तुमने भगत
सिंह की बापू इतिहास तुम पर शर्मिंदा है सुन कहानी वीर शिवाजी और महाराणा की
भगत सिंह का दिल भी डोला था लाज रखी थी इस माटी की और पहला बसंती चोला था
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह जिस दिन फांसी दी जानी थी
दिल्ली और लाहौर तक उस दिन तलवारे चल जानी थी श्याम को फांसी देने का विचार
फिरंगी ओके मन में आया था वीरों की शहीदी के लिए षड्यंत्र अजब यह बनाया था
फिर शहीद-ए-आजम की कुर्बानी का दिन जब वह आया था रंग दे बसंती चोला का
तराना हर गलियारे में गाया था धरती अंबर कांप रहे थे दुख का कोई ना ठिकाना था
उस वीर पुरुष को आज हमारा साथ छोड़ कर जाना था कैसा यह जमाना है
भगत सिंह कविता
जो उन वीरों को आज भूल गया आजादी के लिए जो भगत सिंह फांसी पर झूल गया
नशे ने घेरा गलियारों को जिनमे कभी भगत सिंह घुमा था आत्मा चलनी होती होगी
उनकी सोच कर क्या इस आजादी के लिए फांसी का फंदा चूमा था दूषित न करो इस
धरती को जिसकी कीमत बढ़ी चुकाई है क्यों तुम्हारे कर्म ने गर्दन वीरों की झुकाई है
इस फलसफे की कायल है दुनिया उसकी यह कहानी है इस आजादी को मत बर्बाद
करो जिसके लिए भी वीरों ने कुर्बानी है जिसके लिए भी वीरों ने कुर्बानी है
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