अश्विनी कुमारों के पुत्रों का कोई योद्धा कभी न सनी था नकुल बड़ा ही मनमोहक
और सहदेव बड़ा ही ज्ञानी था धनुर्धर के उस काल में दो तलवारें लहराती थी
देख दोनों का पराक्रम अधर्मियों की रूह कांप जाती थी अधर्मियों के महिमामंडन
में जगत असली धर्म योद्धाओं को भूल गया कलयुग का यह समय है Nakul Sahdev Pandavas Poetry
बंधु धर्म के हो प्रतिकूल गया जब कुरु सेना के वीरों ने नव को असंख्य तीरों से
पाटा था इन्हीं अश्विनी कुमारों ने हर तीर तलवारों से काटा था जब तीर खत्म
होने पर योद्धा युद्ध भूमि से विमुख से हो जाते थे नकुल सहदेव ही थे
जो युद्ध भूमि में अपनी तलवार लहराते थे जब रथ विहीन हो
कर कुछ योद्धा धर्म की दुहाई देते थे रथ त्यागने पर भी
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इन वीरों की तलवारों के शोर सुनाई देते थे रथ ध्वस्त हो जाता है
और रणभूमि में ना कोई तीर काम में आता है तलवारों से शीश काट दे
शत्रु का नकुल जैसा बस वीर ध्यान में आता है अभिमन्यु का छल से वध
करने हेतु जब योद्धा तनिक करते नहीं विचार थे करुणामई सहदेव ही थे
जो रणभूमि में शत्रु का भी करते उपचार थे मेघों की घटा में घुड़सवारी करता
नकुल अभ्यास के जब विचार से बारिश की हर बूंद काट देता था अपनी तलवार
की धार से शास्त्र विद्धिया में परशु लाकर युद्ध नीति को दिए नए आयाम थे
Nakul Sahdev Pandavas Poetry | नकुल सहदेव की गाथा | वीरयोद्धाओ की कहानी
युद्ध भूमि में परसों से लड़ने वाले केवल सहदेव और गुरु परशुराम के वचन के
पक्के सहदेव अकेले दस – दस से टकराते थे दुशासन और शकुनि जैसे तो उनके
नाम से ही कतराते थे अंतिम दिन तक रणभूमि में दोनों का पराक्रम जारी था
नकुल तो ऐसा योद्धा था जो मामा शालिये पर भी भारी था इतिहास भुला है
उस नकुल को जिसने पश्चिम में युद्ध बड़े घमासान किए भीमसेन की प्रतिज्ञा की
खातिर रणभूमि में दुशासन को प्राण दान दिए राज सूर्य का जब हुआ समय तक
सहदेव को दक्षिण जाना था वह सहदेव तुल्य असमर्थता चिरंजीवी विभीषण ने भी पहचाना था
बल बुद्धि और रण कौशल बस उसी योद्धा ने पाया है जितने लक्ष्मण शत्रुघ्न या नकुल सहदेव
के जैसे भाइयों की सेवा में समय बिताया है पढ़कर मुगलों का इतिहास आज भाई भाई का दुश्मन है
दो मुट्ठी जमीन के खातिर घर घर में महाभारत कारण हैं
अरे हिंदू इतिहास में झांक कर देखो करुणा से भर जाओगे नकुल सहदेव या भरत
शत्रुघ्न भाइयों का प्रेम ही पाओगे इतिहास गवाह है जब जब अपनों ने अपनों पर
शास्त्र उठाया है तब-तब गिद्धों ने भारत भू पर आकर हमें नोच नोच कर खाया है
जिस दिन सारा दुवेश त्याग कर हम भाई पांडव से बन जायँगे Nakul Sahdev Pandavas Poetry
अमित प्रेम की पराकाष्ठा से फिरसे सतयुग ले आएंगे फिर से सतयुग आएंगे
Credit:- Deepankur Bhardwaj Poetry
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