जिन लीलाओ की बात सुनी थी जिन लीलाओं की बात सुनी थी वह लीला मैं समझाता हूं
गोकुल के गलियारों से कुरुक्षेत्र रण दर्शन तुम्हें कर आता हूं गोकुल में जन्म लिया और नाम पड़ा था
माखनचोर अरे हरि क था सो हरी ने खाया अपराध नहीं था यह घनघोर शास्त्रों में वर्णित है krishna leela hindi story
आहार तो बस है भूखे का क्षुधा नहीं मिटाता छप्पन भोग किसी की और कोई आभारी रूखे सूखे का
फिर बढ़ा हुआ वृंदावन आया फिर बढ़ा हुआ वृंदावन आया गोपियों संग रास रचाया रे छोटी
सोच लेकर तुम लांछन मुझ पर लगाओगे वासना से पीड़ित हो शाश्वत प्रेम समझ ना पाओगे जन-जन
में कृष्ण हर रण में कृष्ण जो प्रेम से देखो तो कण-कण में कृष्ण जितने जाना प्रेम को उसके हैं
तन मन में कृष्ण जब कृष्ण प्रेम में खोकर गोपी नृत्य कर हर से आई थी
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krishna leela hindi story | कृष्ण लीला हिंदी में | Parbramh Darshan
कृष्ण प्रेम की अद्भुत बेला रासलीला के लाई थी उस पावर लीला पर उंगली उठा कर उस
पावर लीला पर उंगली उठा कर छुपाते अपने तुम दुश कांड हो अरे नारायण को गलत बताकर
कलंकित करते सारा ब्रह्मांड हो 16000 पत्नियां भी वह अपनाई नरकासुर ने जिनके भंग किया था
मान को अरे भ्रूण हत्या के दोषियों तुम क्या जानोगे नारी के सम्मान को जब कंस धरा पर पटका था
तो फिर हुई घनेरी थी जब कंस धरा पर पटका था तो फिर हुई घनेरी थी अरे क्या करूं नारायण हूं
वह चीख भी तो मेरी थी वध जिसका हुआ है वह भी मैं और मेने ही करी वह हत्या है
जो नारायण छल करते हो तो यह ब्रह्मांड की सारा मिथ्या है ऐसा कोई अमृत कवच नहीं है
जिसको ना भेद सके नारायण भजन लगता हो तो पड़ी तो होगी तुमने रामायण रावण का
संघार हुआ था तब उदर में उसके अमृता अरे कर्ण कवच अभेद्दिया नहीं था
वह भी अमृत से निर्मित था अरे मुठ्ठी में तीनों काल मेरे महाकाल भी मुझ में है
सहस्त्र सूर्य समयत मुझमे जो दिखते तुमको जग में है मुझसे ऊपर कोई श्राप नहीं है
मुझ में वरदान खत्म हो जाता है मैं ही व्यापार ब्रहम हूं जो नियति का चक्कर चलाता है
भूमि के श्राप का मान रखा था और मान रखा था परशुराम का यदि पक्षपात ही करना होता
कर्ण कवच भी ना होता किसी काम का सृष्टि रचने वाला ब्रह्मा ब्राह्मण हूं मैं चित्र में ही हूं
और विध्वंस जब होगा धरा पर वह प्रलयंकारी रुद्र भी मैं हूं मैं पारब्रह्म हूं मैं रचना में हूं
कृष्ण लीला हिंदी में | Parbramh Darshan
सृष्टि की संरचना में हूं मैं ही हूं जो महाकाल हूं कभी मां की ममता सा कोमल हूं कभी रौद्र
रूप में मैं विकराल हूं अरे मुझे छलिया कह कर खाख हुए सब कलयुग में अब तुम फिर से
बोर आए हो रे कृष्ण रंग है भूमंडल सारा इतना भी समझ ना पाए हो नारायण को छल करना
इतना कोई शक्तिमान नहीं है अरे पालन करता है जो सृष्टि का उसको बालक देते ज्ञान नहीं है
मुझ में ही समाहित सारी धरती मुझ में सात समंदर है अरे मुझ में झांक के देख ले बंधु तू भी
मेरे अंदर है अरे हर नर में नारायण है जब बात समझिए जाओगे सब्यसाची के जैसे ही
तुम गांडीव धारी बन जाओगे सब्यसाची के जैसे ही तुम गांडीवधारी बन जाओगे
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