ज्वाला का रौद्र रूप में यज्ञ से निकली काली हूं पांडवों का गौरव हूं याज्ञसेनी पांचाली हु
यज्ञ से जन्मी वो जुवला हु जो सर्वभक्ष कहलाई है उसका क्या अपमान करोगे
जिसकी लाज नारायण ने बचाई है Draupadi in Mahabharat Poetry
पांडव और मेरे रिश्ते को नारायण ने सम्मान दिया तुम मुझ पर लांछन लगाते हो
तुम्हें इतना किसने ज्ञान दिया नारी को अपमानित करके समय पर खुद को वीरेंद्र
वह शरीर से तो छोड़ो तुम तो आत्मा से दरिद्र हो अधर्मियों के महिमामंडन में आगे
तुम निकल गए ग्रंथों की न लाज रखी और श्लोक सभी बदल दिए अरे हिंदू रीत है
ससुर पिता के समान है अरे हिंदू रीत है ससुर पिता के समान है
मैंने अंधे का पुत्र अंधा कहा इस ग्रंथ ने दिया तुमको ऐसा ज्ञान है
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अरे कहां से तुम्हें पता चला किया मेने तात श्री का अपमान था किस ग्रंथ में है यह श्लोक
लिखा या गीता में यह प्रमाण था स्वयंवर मेरा भव्य हुआ ना किया किसी का भी अपमान था
उठा सका न शिव धनुष को कोई टुटा सबका अभिमान था कहते हो तुम नहीं दिया धनुष
उठाने क्योंकि छोटी जाति के कर्ण थे अरे महामूर्ख तब जाति नहीं थी तब होते केवल चार वर्ण थे
Draupadi in Mahabharat Poetry | द्रौपदी माता पांचाली की कविता
जब धनुष ना उठा अंगराज से तब तक उनका टकराया था इसी प्रतिकार स्वरूप
उन्होंने सभा में वैश्या कह के बुलाया था और सूत पुत्र ना कहा किसी को क्यों तुमने
मुद्दा उठाया है मां ब्रह्माणी और पिता क्षत्रिय ऐसा योद्धा सूत पुत्र कहलाया है
मेरे चरित्र पर उंगली उठा कर संतोष कैसे तुम पाते हो क्या असर हुआ था दुशासन का यह भी
भूल जाते हो लांछन लगा दिया मुझ पर कारण कि मैं महासंग्राम का शांतिदूत श्री कृष्ण का
प्रस्ताव किसने था 5 ग्राम का अरे अपमान का कड़वा घूंट किया और शांति प्रस्ताव भिजवाया था
फिर श्री कृष्ण की ना बात मानकर दुर्योधन ने युद्ध का बिगुल बजाया था नारी का अपमान
करके सुख कैसे तुम पाते हो जिस नारी से जन्म लिया है उस पर नजरें कैसे मिलाते हो
जब सहनशीलता चरम पर होगी और अधर्मियों की मनमानी बढ़ती चली जाएगी यही
कोमल की ममता की प्रतिमा फिर तुमको दुर्गा बन दिखलेगी दुष्कर्मियों के रक्त का खप्पर भर के
चंडी बन जाएगी किया हश्र हुआ था रक्तबीज का इतिहास को फिरसे वो दोहराएगी है
द्रौपदी माता पांचाली की कविता
अरे शक्ति बिना शिव शिव समान है और नारी ही वह शक्ति है वही दुर्गा का स्वरूप है
और बन रोक दी थी उसी ने गोविंद की भक्ति है अरे युग जैसे जैसे बढ़ता है विवेक मनुज अब खोता
है और देख नारी की व्यथा को आज दुर्योधन भी रोता है देख नारी की व्यथा को आज दुर्योधन भी रोता है
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