गर्मी की उस धूप में मनो पेड़ था में नीम का जाड़े की किसी रात में जैसे कोना
एक ग्रीष्म का मालिक कुरुवंश की बगिया का मेरा नाम देवव्रत भीष्म था धर्म था
अटल मेरा सामर्थ मेला पिता के ही नाम से शौर्य को नमन मेरे करते गुरु परशुराम थे Bhishma Vyatha A poem
सॉरी को नमन मेरे करते गुरु परशुराम थे विचलित पिता का जो मन हुआ तो मैं अप्रसन हुआ
फिर शपथ ली गंगा मां की जिसका साक्षी है गगन हुआ मेरी पित्र भक्ति मेरा धर्म मेरा
त्याग कलयुग में तुम जान कभी ना पाओगे जब एक ही स्त्री के प्यार में बूढ़ा पिता घर से भगाओ गे
अखंड था वचन मेरा और चरित्र मेरा सूर्य सा पिता की खुशी के लिए लिया वचन ब्रह्मचर्य
का सूर्य धर्म प्रेमचंद्र है ऐसा मेने जाना था एक वचन में बंद कर मैंने बस असली कर्म ना पहचाना था
एक वचन में बंद कर बस असली कर्म ना पहचाना था बस दुख और पीड़ा ओ का ग्रास में बना रहा
प्रतिज्ञा से बंद कर अधर्म का दास में बना रहा Credit DeepanKur Bhardwaj Poetry
यहाँ भी जरूर पढ़े :-
- Veer Abhimanyu is A poem about the most incredible warrior in the History
- Angraaj Karn Gatha A Poem about Real Mahabharat Karna
- Shiva Swaroop Darshan Mahadev Poetry
Bhishma Vyatha A poem | पितामह भीष्म गाथा
कुरुवंश पर शास्त्र उठाकर न कर सकता देशद्रोह था
महाभारत का कारण सिर्फ धृतरास्त्र का पुत्र मोह था
महाभारत का कारण सिर्फ धृतरास्त्र का पुत्र मोह था
अपमान कुलवधू का देख मैं मोन सा खड़ा रहा न जाने कौन सा मिथिया धर्म था जिस पर मैं अड़ा रहा
अरे पांचाली का अपमान तुम्हें यह सिखाएग नारी का होगा जो अपमान तो धरा पर विध्वंस हो जाएगा
नरमुंड के ढेर होंगे रूद्र तांडव मच जाएंगे जब धर्म स्थापना करनी होगी
तो पार्थ संघ गोविन्द जरूर आएंगे तो पार्थ संघ गोविन्द जरूर आएंगे
धर्म युद्ध की भेंट चढ़ने वाला झूठा था या सच्चा था ज्ञात मुझे बस इतना है
हर एक मेरा बच्चा था पांडव हो या कौरव हर मौत पर मैं रोया था शूल सैयां
से अप्रत्यक्ष थी अपनों के शवों पर मैं सोया था अपनों के शवों पर मैं सोया था
जंघा टूटी जब दुर्योधन की थी और अभिमन्यु जैसे मेरे बच्चों की लाश गिरी बहुत तेरी
थी उस रन के महाकुंभ में जीता चाहे कोई हो पर आत्मा तड़पी सिर्फ मेरी थी पर आत्मा तड़पी सिर्फ मेरी थी
वचन का पालन करता या पालन करता मैं सत्य धर्म का हर बात मेरे पुत्रों की थी
वे स्मरण हो आया था मुझे सत्कर्म का अभागा में था जो मेरे कुल पर काले दृष्टि
आई थीधर्म पक्ष में था नहीं तभी मेरी वीरता न काम आई थी
भीष्म वियाथा | पितामह भीष्म गाथा
मेरा और युद्ध कौशल देख माधव को क्रोध हुआ पार्थ नहीं त्यागे का पितामह के मुंह को कुछ
ऐसा उनको बहुत हुआ जब मैंने नरसंहार किया वह दृश्य बड़ा वक्रता
वध करने हेतु मेरा माधव ने उठाया फिर चक्र था
ज्ञात तथा मुझे भी के मैं योद्धा में पूर्ण हु परशुराम को निरस्त्र किया है मैंने मुझे मारने
वाला गुवाले होता है कौन तू अरे नारायण को ना पहचान कर अधर्म की नैया चुन
बैठा जीवन की बस एक गलती से मरणासन्न शैय्या चुनन बैठा
अरे नारायण को छलिया कहने वालों तुम अधर में मना मत पीस जाना
मुझको तो तीरों की सैया मिली थी तुम कहीं भालो पर ना बिछजाना तुम
कही भालो पर न बिछ जाना
1 thought on “Bhishma Vyatha A poem about Bhishma Pitameh”