ढाल मेरा सूर्य का तेज मई वर्ण है राधा मां का लाडला में नाम मेरा करने है
शौर्य मेरा वीरभद्र का पांडवों का भाई था बाहुबल के समक्ष मेरे महाबली जरासंध
धराशाई था धर्म क्या धर्म क्या सबको मैं बताता हूं अपने जन्म से मृत्यु तक की गाथा
मैं सुनाता हूं ऋषि दुर्वासा के दिव्य मंत्र पाकर माता कुंती प्रसन्न हुई अधीरता में पिता
भास्कर का ध्यान किया पुत्र पाकर धन्य हुई माता कुंती की गोद में मैंने केवल कुछ
वक्त ही गुजारा था कैसा अद्भुत क्षण था जब मेरी जननी ने मुझ को निहारा था Angraaj Karn Gatha
अपने कनीन पुत्र के भविष्य का मैया को स्मरण हो आया था तभी आंखों में आंसू
भर के मुझे गंगा में बहाया था अरे मुझे गंगा मां को सौंपने का हर जन्म में मेरी मैया
को अधिकार है और जो मेरी जननी को अपशब्द कहे प्रशंसक पर धिक्कार है ऐसे प्रशंसक पर धिक्कार है
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अरे बाबा और राधे मां मां गंगा मां के पात्र मुझको हुए खुशहाल थे
वह केवल कृष्ण और कर्ण थे तो दो मैया के लाल थे बड़े बड़े कांटे मेरी आत्मा
में घुसकर सता रहे अरे मेरे सबसे पहले गुरु गुरु द्रोण को लोग अहंकारी बता
रहे उच्च नीच जात पात का कलंक यह लगा रहे जातिवाद जो कुछ सदियों से
पनपा है उसको सनातन इतिहास यह बता रहे जातिवाद नहीं खत्म सामर्थ्य
अनुसार मनुष्य चुनता अपना बना था संघर्ष केवल था इतना कि अधर्म से गिर Credit DeepanKur Bhardwaj Poetry
Angraaj Karn Gatha A Poem about Real Mahabharat Karna
चुका करना था मेरे गुरु द्रोण को गाली दे कोई यह मुझे कभी नहीं आया था
उसी परम पूज्य गुरु ने मुझे अरे गलती मेरी बड़ी थी बचपन से रहा धर्मी दुर्योधन
के साथ में यदि पांडवों से लाख-लाख छोड़ है देर में धर्म होता तो गुरु द्रोण थमा देते
ब्रह्मास्त्र मेरे हाथ में अरे अभी भी नहीं देर हुई संस्कृति जानी है और ग्रंथ पढ़ कर आई है
क्योंकि मेरे गुरु का अपमान करने वाले मुझे निर्लज्ज भक्त नहीं चाहिए अरे डिस्ट्रिक्ट
उनकी नियति ही बंद थी उनका उसको दीदी तितिक्षा मेरे गुरु द्रोण ने उनका भी था
यही कि दुर्योधन के धर्म पर वह खड़े रहे मोहन थे भूल से सीख ले लो मेरी फिर से मैंने
भविष्य की सभी संभावनाओं को विफल किया एक गुरु को त्याग दिया और जाकर दूजे
से छल किया गुरु परशुराम का श्राप हम सब को यह सिखाता है और असत्य से प्राप्त ज्ञान
काम नहीं आता है मिला ज्ञान गुरु परशुराम से पूरे आर्यव्रत मैंने नाम किया मेरे अतुल को स्वयं जरासंध ने प्रणाम किया
जब युद्ध करता था तो नवग्रह रुक जाते थे स्वयंवर में पिता भास्कर मेरे तीनों से छुप जाते थे
अरे सूर्य नारायण का अंश था पर युद्ध में मैं रूद्र था अधर्मी मित्र का जो साथ था
तो वो चला तनिक उग्र था पर वचनों का मान रखा कवच कुंडल को त्यागा था
अरे भास्कर पिता का परामर्श था तो इंद्र शक्ति अस्त्र को भी मांगा था मन ही
मन प्रसन्न था कि श्रेष्ठ मैं बन जाऊंगा इंद्र की वास्तविक शक्ति उसके अंश पर
चला लूंगा पर संसार की है नियति विजय श्री धर्म के हाथ ही आनी थी और बात हुई Angraaj Karn Gatha
अंग राज कारन A Poem about Real Mahabharat Karna
शक्ति मुझे पुत्र समान घटोत्कच पर चलानी थी महाभारत के कर्ण को भी शौर्य मेरा याद है
और भीमताल की जैसी योजनाओं को बेच खाया मैंने पराजय का स्वाद है स्वयं धर्मराज ने
त्याग दिया समक्ष मेरे युद्ध था रूद्र तांडव हो जाता था जब होता सूर्यपुत्र कर्ण कथा जीवन की अंतिम परीक्षा थी
सामने अनुज मेरा पार्थ हां प्रेम और करुणा की मूरत ना हो ना मन में कोई स्वार्थ था
भी जारी करने की सामर्थ्य दिखलाया था मेरा रूप विकराल देख भीम और माधव ने
उत्साह पार्थ का बढ़ाया था पर चक्रधरा में जा फंसा विनाश में अवश्यंभावी था
और मेरा अधर्म उस दिन मेरी वीरता पर हावी था मुरली वाले ने भारत की ठानी थी
और पार्क में चमत्कार किया निराश इस धरा पर गिर गया ना किसी के सिर आपका भी
तिरस्कार किया मुझे मिले हरीश रावत का मान रख कर धर्म का बिगुल मेरे अनुज ने
बजा दिया धर्म के साथ खड़े भाई काशीष गिराकर धर्मराज के शीश पर विजय मुकुट था
सजा दिया महाभारत सिर्फ काव्य नहीं रिश्तो की गरिमा और जीवन का सार है धर्म धर्म
की पराकाष्ठा देखो इसमें अपार है सनातन इतिहास में बेवजह जातिवाद की त्रुटि क्यों मिलाते हो
मुझसे तो चलो भूल हुई तुम क्यों अधर्म से जुड़ जाते हो अरे मेरे अनुज गुरु और माता का अपमान
दे आंखों में उतरता मेरी रक्त है और जो मेरे अपनों को अपशब्द कहे क्या खाक मेरा भक्त है अरे
जो मेरे अपनों को अपशब्द कहे वह क्या खाक मेरा भक्त है
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